कर्म के प्रभाव
1. ज्ञानावरण/दर्शनावरण – आवरण घटने से – क्षयोपशमिक-भाव
2. वेदनीय – कर्मोदय से – औदायिक-भाव
असाता के कर्मोदय से – शारीरिक/पारिवारिक दु:ख।
बाहरी उपाय तभी सार्थक जब अंदर असाता का उदय समाप्त या मंद।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
1. ज्ञानावरण/दर्शनावरण – आवरण घटने से – क्षयोपशमिक-भाव
2. वेदनीय – कर्मोदय से – औदायिक-भाव
असाता के कर्मोदय से – शारीरिक/पारिवारिक दु:ख।
बाहरी उपाय तभी सार्थक जब अंदर असाता का उदय समाप्त या मंद।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
कर्म का तात्पर्य मन वचन काय के द्वारा प़तिक्षण कुछ न कुछ करना यह सब क़िया या कर्म है। कर्म तीन प़कार के होते हैं, द़व्य,भाव एवं नो कर्म। इसके द्वारा कर्म फल मिलता रहता है। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि कर्म के प्रभाव 1 ज्ञानावरण एवं दर्शनावरण के आवरण घटने से क्षयोपशमिक भाव होता है।2 वेदनीय कर्मोदय से औदायिक भाव। असाता के कर्मोदय से शारीरिक एवं पारिवारिक दुःख होता है। बाहरी उपाय तभी सार्थक होते हैं,जब अंदर असाता का उदय समाप्त हो या कम हो। अतः जीवन में विशुद्ध भाव से कर्म करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।