कर्म

कर्म को “बेचारा” कहा है।

क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी

(बेचारा ही तो है… लम्बे अरसे तक आत्मा में कैद रहता है बिना किसी कसूर के।
बिडम्बना… हम उस बेचारे के साथ रहते-रहते बेचारे हो जाते हैं)

चिंतन

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2 Responses

  1. कर्म का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में बेचारे न बन कर अपनी आत्मा में जमे कर्मों को उखाडना परम आवश्यक है, ताकि जीवन में अच्छे कर्मों को जमा करने का प़यास करना परम आवश्यक है।

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