बिना मन वालों की कषायें कम होती हैं और सीमा में रहतीं हैं, स्थितिबंध कम पर संक्लेश हर समय, डरादि के कारण।
मन वालों में कषायें/ संक्लेश कम(1 इन्द्रिय के बराबर) भी, पर ज्यादा भी कर सकते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तित्थयर भावणा- छंद 31)
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6 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने कषाय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन का कल्याण करने के लिए कषायों को समाप्त करने का प़यास करना परम आवश्यक है।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने कषाय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन का कल्याण करने के लिए कषायों को समाप्त करने का प़यास करना परम आवश्यक है।
‘संक्लेश कम(1 इन्द्रिय के बराबर) भी’ ka kya meaning hai, please ?
मन वालों में संक्लेष minimum से लेकर maximum तक हो जाता है ।
मन वालों में कषाय ki kya stithi hoti hai ?
2nd para में बताया गया है कि minimum to maximum.
Okay.