काया
काया का कायल नहीं, काया में हूँ आज ।
कैसे काया-कल्प हो, ऐसा हो कुछ काज ।।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(हम तो आज चाय के भी कायल हैं)
काया का कायल नहीं, काया में हूँ आज ।
कैसे काया-कल्प हो, ऐसा हो कुछ काज ।।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
(हम तो आज चाय के भी कायल हैं)
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काया का मतलब शरीर होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि काया का कायल नहीं,काया में हूं आज। लेकिन जीवन में काया कल्प होना आवश्यक है ताकि जीवन में कुछ अच्छा हो सकता है। आजकल मनुष्य अपनी काया को महत्व देते हैं, बल्कि काया कल्प यानी अपनी आत्मा को निर्मल अथवा पवित्र बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।