काय
कर्मोदय से काय जीव को अनुभव कराती है कि वह स्थावर या त्रस (द्वींद्रिय से पंचेंद्रिय) जाति का जीव है। जाति, त्रस और स्थावर जीव-विपाकी नामकर्म हैं, जो जीव में घटित होते हैं।
काय जीव की पर्याय है। नोकर्म वर्गणाओं से बने शरीर को बाहरी शरीर तो हम उपचार से कहते हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड़-गाथा – 182)
8 Responses
मुनि महाराज ने काय जीव की परिभाषा दी गई है वह पूर्ण सत्य है!
‘नोकर्म वर्गणाओं से बने शरीर को बाहरी तो हम उपचार से कहते हैं।’ Is sentence ka kya meaning hai, please ?
नोकर्म वर्गणायें निश्चय से तो कार्मण/ तैजस की रचना करते हैं।
Okay.
‘Audarik’, ‘Vaikriyak’ ya ‘Ahaarak’ shareer hi bahari shareer hai na , ‘नोकर्म वर्गणायें’ ko bahari shareer kyun kahenge ?
शरीरों का निर्माण करता तो नोकर्म वर्गणायें हैं। इसलिए दिखने वाले शरीरों को उपचार से बाह्य शरीर कहा।
It is now clear to me.
It is now clear to me.