काललब्धि
किसी भी लब्धि के लिये काल (समय) के साथ साथ योग्यता भी आवश्यक है तथा पुरुषार्थ भी ।
देवों में आहार/श्वासोच्छवासादि सब निर्धारित समय पर होता है, मनुष्य में नहीं ।
काल-द्रव्य तो अपनी निर्धारित गति से परिणमन करता रहता है। अपनी पुरुषार्थहीनता को छुपाने के लिये काललब्धि का बहाना ले लेते हैं । सम्यक् पुरुषार्थ करते करते जब योग्यता व्यक्त करते हैं, वही भव्यतव्यता है/वही काल लब्धि है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
काल लब्धि का मतलब सम्यग्दर्शन की प्राप्ति का समय होता है,यह दो प्रकार की होती है बहिरंग रुप और अंतरंग रुप जो अनिवार्य है। लब्धि का मतलब तप विशेष से प्राप्त होने वाली रिद्धि अथवा जिसके संसर्ग से आत्मा द़व्येन्द़िय की रचना करने के लिए तत्पर होता है। यह पांच प़कार की होती है लेकिन करण लब्धि भव्य जीव के होती है। अतः मुनि जी का जो उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण रूप से सत्य है।