काल

जो सत्ता, उत्पाद, व्यय, ध्रौव्य, षटगुणी हानि-वृद्धि रूप हमेशा स्व तथा सब द्रव्यों में वर्तन कराता है, वही काल है।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 5/22)

Share this on...

One Response

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने काल को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives

October 22, 2024

November 2024
M T W T F S S
 123
45678910
11121314151617
18192021222324
252627282930