केवलज्ञान

एक चित्रकार था दूसरा विचित्रकार( विचित्र चित्रकार), दोनौं में competition हुआ – एक हाल की एक दीवार चित्रकार को दी गयी और दूसरी विचित्रकार को ।  एक माह का समय दे दिया। बीच में पर्दा ड़ाल दिया गया।

एक माह बाद देखा कि चित्रकार ने संसार का बड़ा सुंदर चित्र बनाया है, निरीक्षकों ने बहुत तारीफ़ की ।  विचित्रकार की दीवार पर कुछ नहीं था, चमकती हुई साफ दीवार थी, एक माह तक उसने दीवार को खूब चमकाया था।

चित्र कहाँ है ?

पर्दा हटाओ ।

उस चमकती दीवार में सामने की दीवार का, संसार का चित्र दिख रहा था और उसमें चित्रकार, विचित्रकार तथा निरीक्षक भी दिखाई दे रहे थे।
संसार का चित्र और सजीव दिखने लगा था।

यदि हम अपनी आत्मा को ऐसे ही साफ करलें, चमका लें तो उसमें सारा संसार दिखने लगेगा, उसमें हमारा रूप भी दिखने लगेगा, केवल ज्ञान हो जाएगा ।

मुनि श्री क्षमासागर जी

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