केवलज्ञान आत्मा की पर्याय नहीं है,
ज्ञानगुण की पर्याय है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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जो सकल चराचर जगत को दर्पण में झलकते प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवलज्ञान है, यह चार घातिया कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि केवलज्ञान आत्मा की पर्याय नहीं है, बल्कि ज्ञानगुण की पर्याय होती है।
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जो सकल चराचर जगत को दर्पण में झलकते प़तिबिंब की तरह एक साथ स्पष्ट जानता है वह केवलज्ञान है, यह चार घातिया कर्मों के नष्ट होने पर आत्मा में उत्पन्न होता है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि केवलज्ञान आत्मा की पर्याय नहीं है, बल्कि ज्ञानगुण की पर्याय होती है।