केवलज्ञान

  1. केवलज्ञान सम्पूर्ण => ज्ञान के सारे शक्ति-अंश व्यक्त हो गये।
  2. केवलज्ञान समग्र => मोहनीय और वीर्यान्तराय कर्मों के क्षय से समग्र ज्ञान प्रकट हो जाता है।
  3. केवलज्ञान असहाय => इंद्रियों की सहायता के बिना प्राप्ति।
  4. केवलज्ञान प्रतिरोध रहित => घातिया कर्मों के क्षय से।
  5. केवलज्ञान अनंत ज्ञान रुप => लोकालोक में सब पदार्थों को जान लिया।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड- गाथा 460)

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6 Responses

  1. मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने केवलज्ञान को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।

  2. ‘केवलज्ञान सम्पूर्ण’ aur ‘केवलज्ञान केवलज्ञान सम्पूर्ण’ me kya difference hai ? Ise explain karenge, please ?

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