मन
मन कोमल होता है सो आकार ले लेता गर्म लोहे जैसा, झुक जाता है तूफानों में, घुल जाता अपनों में/ अपने में।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मन कोमल होता है सो आकार ले लेता गर्म लोहे जैसा, झुक जाता है तूफानों में, घुल जाता अपनों में/ अपने में।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने मन की परिभाषा बताई गई है वह पूर्ण सत्य है। जीवन में कल्याण के लिए मन पर नियंत्रण करना परम आवश्यक है।
गर्म loha kya ‘jhukta’ aur ‘ghulta’ hai kyunki uski comparison man se ki gayi hai ?
मन को गर्म लोहे जैसा बताया।
आगे के गुण सिर्फ मन के बताये हैं।
Okay.