क्रोध
रे जिया ! क्रोध काहे करै ?
वैद्य पर विष हर सकत नाही, आप भखऔ मरे।
(दूसरे का विष उतारने को वैद्य के विष खाने से विष उतरेगा नहीं)
बहु कषाय निगोद वासा*, क्षिमा ध्यानत तरै। रे जिया–
*नरक से भी दुखदायी पर्याय
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (द्यानतराय जी)
4 Responses
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने क़ोध का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन का कल्याण करना हो तो क़ोध को समाप्त करना चाहिए, इसके साथ क्षमा भाव रखना परम आवश्यक है।
‘आप भखऔ मरे।’ Yahan par kiski baat ho rahi hai ?
“…भखयौ” लाइन के नीचे की लाइन देखें।
Okay.