क्षयोपशम/क्षायिक सम्यग्दर्शन

आ. श्री विद्यासागर जी को ऐसा लगता है कि क्षयोपशम सम्यग्दर्शन है, क्योंकि वे विपरीत परिस्थितियों में में भी प्रसन्न रहते हैं ।

कमलाबाई जी

भरत तो क्षायिक सम्यग्दृष्टि थे, उन्होंने आपा क्यों खोया ?
क्योंकि वे असंयमी थे ।

चिंतन

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One Response

  1. सम्यग्दर्शन का मतलब सच्चे देव शास्त्र और गुरु पर श्रद्धा का नाम है। इसके दो भेद हैं।नय की अपेक्षा निश्चय और व्यवहार ऐसे सम्यग्दर्शन होते हैं।मिथ्यात्य कर्म के उपशम,क्षय तथा क्षपोशयम की अपेक्षा सम्यग्दर्शन के तीन भेद है। अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि आचार्य श्री विद्यासागर जी को ऐसा लगता है कि क्षपोशयम सम्यग्दर्शन है, क्योंकि वे विपरीत परिस्थितियों में भी प़सन्न रहते हैं। भरत तो क्षायिक सम्यग्द्वष्टि थे, लेकिन उन्होंने आपा खोया क्योंकि वह असंयमी थे।

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