नरक गति में जन्मे जीव को प्रथम समय में क्रोध/ बहुलता भी क्रोध की/ संस्कार भी लम्बे समय तक चलता है।
ऐसे ही अन्य गतियों में लगाना → तिर्यंच में माया, मनुष्य में मान, देवों में लोभ कषाय।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड-गाथा- 288)
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मुनि महाराज जी ने गतियों एवं कषाय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः अच्छी गतियों के लिए अपने दोष निवारण करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!
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मुनि महाराज जी ने गतियों एवं कषाय का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है! अतः अच्छी गतियों के लिए अपने दोष निवारण करना परम आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है!