1. गति-नामकर्म के उदय से उत्पन्न पर्याय को “गति” कहते हैं।
2. जिससे जीव जानने(ज्ञान) में आये/ जाना जाता है।
3. गति ही चारों गतियों में भ्रमण कराने में हेतु है।
4. गति-मार्गणा संसारी जीवों की होती है सो 4 गतियाँ ही ली गयीं हैं।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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मुनि महाराज ने गति मार्गणा के बाबत उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!
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मुनि महाराज ने गति मार्गणा के बाबत उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!