गुण की पूजा, गुणी की ज़रूरी नहीं ।
गर्भ-कल्याणक की पूजा, गर्भ धारण करने वाली माँ की नहीं,
सम्यग्दर्शन की पूजा, अविरत-सम्यग्दृष्टि की नहीं,
सम्यग्दृष्टि तो पशु भी हो सकता है ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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One Response
गुण – – जो एक द़व्य को दूसरे द़व्य से प़थक करता है उसे कहते हैं।गुण सदा द़व्य के आधीन रहते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि गुण की पूजा की जाती है, जबकि गुणी की जरूरत नहीं होती है।इसी प्रकार सम्यग्दर्शन की जाती है न की सम्यग्-द्रष्टि की नहीं की जाती है क्योंकि सम्यग्-द्रष्टि तो पशु भी हो सकता है।
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गुण – – जो एक द़व्य को दूसरे द़व्य से प़थक करता है उसे कहते हैं।गुण सदा द़व्य के आधीन रहते हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि गुण की पूजा की जाती है, जबकि गुणी की जरूरत नहीं होती है।इसी प्रकार सम्यग्दर्शन की जाती है न की सम्यग्-द्रष्टि की नहीं की जाती है क्योंकि सम्यग्-द्रष्टि तो पशु भी हो सकता है।