गृहस्थ / साधु
तकलीफें बहुत, सो रहना नहीं;
इस युग में मंज़िल (मोक्ष) मिलना नहीं।
आचार्य श्री विद्यासागर जी –
“अब और नहीं, छोर चाहता हूँ।
घोर नहीं, भोर चाहता हूँ” ।
सज्जन मारता नहीं, साधु बचता भी नहीं।
बड़े गृहस्थ भी अस्त्र शस्त्र नहीं रखते, जैसे राष्ट्रपति।
मुनि श्री सुधासागर जी
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उपरोक्त कथन सत्य है कि साधुओं एवं ग़हस्थो में बहुत अन्तर है– साधु मोक्ष पर चलने में समर्थ रहते हैं जबकि ग़हस्थो संसार में भटकते रहते हैं,यह चक्र चलता रहता है। श्रावकों को अणुव्रत पालन करना अनिवार्य है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है। अतः मोक्ष मार्ग के लिए वैराग्य की भावना को संकल्प लेकर चलना चाहिए ताकि मोक्ष मार्ग पर चलने में समर्थ हो सकते हैं।