गोत्र-संक्रमण
मनुष्य, देव, नारकी के गोत्र-संक्रमण नहीं होता।
तिर्यन्च यदि पांचवें गुणस्थान में हो तो किसी किसी के होता है।
श्री धवला जी के अनुसार – गोत्र के 6 भेद – उच्च-उच्च, उच्च, उच्च-नीच, नीच-उच्च, नीच, नीच-नीच।
मनुष्य में नीच से नीच-उच्च गोत्र संभव है और ये क्षुल्लक बन सकते हैं। यह परिवर्तन पुरूषार्थ और शुभ कार्यों से संभव होता है।
भोगभूमि में तिर्यन्चों के यह परिवर्तन संभव नहीं है क्योंकि वो उच्च कार्य कर ही नहीं सकते हैं, वहां के मनुष्यों के भी परिवर्तन नहीं होता क्योंकि वे भी नीच कार्य कर ही नहीं सकते।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी