भगवानों के वर्धमान चारित्र होते हैं।
पंचमकाल में हीयमान।
पर आचार्य श्री विद्यासागर जी के समय में तो वर्धमान दिख रहा है ?
आचार्य श्री के व्यक्तिगत प्रभाव से वर्धमान दिख रहा है।
लेकिन उनके बाद पहले से भी नीचे स्तर पर पहुँचने की सम्भावना।
चिंतन
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चिंतन में चारित्र का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए चारित्र को बनाने का प़यास करना परम आवश्यक है।
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चिंतन में चारित्र का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए चारित्र को बनाने का प़यास करना परम आवश्यक है।