छह आवश्यकों में व्यस्त होना बहुत पुण्य का उदय,
और
संयम भी माना जाता है ।
आचार्य श्री विद्यासागर जी
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आवश्यक का मतलब साधुओं के लिए अनिवार्य रूप से जो क़ियाए करना होती हैं वह कहलाती हैं। यह छह प़कार की होती हैं, सामायिक,स्तवन,वन्दना,प़तिकमण,प़त्याख्यान और कायोत्सर्ग। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि छह आवश्यकों में व्यस्त होना बहुत पुण्य का उदय होता है और इसको संयम भी माना जाता है।
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आवश्यक का मतलब साधुओं के लिए अनिवार्य रूप से जो क़ियाए करना होती हैं वह कहलाती हैं। यह छह प़कार की होती हैं, सामायिक,स्तवन,वन्दना,प़तिकमण,प़त्याख्यान और कायोत्सर्ग। अतः आचार्य श्री विद्यासागर महाराज जी का कथन सत्य है कि छह आवश्यकों में व्यस्त होना बहुत पुण्य का उदय होता है और इसको संयम भी माना जाता है।