प्रकृति के छह बेटे, सबसे बड़ा जीव।
चक्रवर्ती तो एक ही होता है, भरत।
चार समताभावी/निष्क्रिय निमित्त – ९९ भाइयों जैसे।
पुद्गल रूपी बाहुबली को अधीनता स्वीकार नहीं।
मुनि श्री सुधासागर जी
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द़व्य का तात्पर्य गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं,जो उत्पाद और ध़ोव्य से युक्त होते हैं। द़व्य छह होते हैं,जीव,पुदग्ल धर्म,अधर्म,आकाश और काल। अतः मुनि महाराज जी ने जो उदाहरण दिया है वह पूर्ण सत्य है।
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द़व्य का तात्पर्य गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं,जो उत्पाद और ध़ोव्य से युक्त होते हैं। द़व्य छह होते हैं,जीव,पुदग्ल धर्म,अधर्म,आकाश और काल। अतः मुनि महाराज जी ने जो उदाहरण दिया है वह पूर्ण सत्य है।