जलादि-कायिक जीव
जलादि-कायिक जीव बादर ही होते हैं, क्योंकि ये जीव जलादि पुदगल के आधार ही रहते हैं ।
(गाथा – 179 प्रवचनसार) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
जलादि-कायिक जीव बादर ही होते हैं, क्योंकि ये जीव जलादि पुदगल के आधार ही रहते हैं ।
(गाथा – 179 प्रवचनसार) मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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जिन जीवों का शरीर स्थूल अर्थात प़तिघात सहित होता है उसे बादर काय जीव कहते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि जलादि कायिक जीव बादर ही होते हैं, क्योंकि ये जीव जलादि पुदगल के आधार ही रहते हैं।