जीना
प्रायः सुनते हैं –> “बच्चों के लिये जी रहे हैं।“
यानी पराश्रित/ चिंतित –> रोगों को निमंत्रण।
सही –> अपने लिये जी रहे हैं –> निश्चितता/ निरोगी।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
प्रायः सुनते हैं –> “बच्चों के लिये जी रहे हैं।“
यानी पराश्रित/ चिंतित –> रोगों को निमंत्रण।
सही –> अपने लिये जी रहे हैं –> निश्चितता/ निरोगी।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने जीना को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए अपनी आत्मा का कल्याण करने के लिए जीना परम आवश्यक है।