ज्ञान धारा → अजायबघर में रखी वस्तुओं के प्रति दृष्टिकोण।
कर्म धारा → घर/ पुत्रादि के प्रति, रागद्वेष सहित कर्ताबुद्धि।
दोनों धारायें साथ-साथ नहीं चल सकती हैं।
क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी
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ज्ञान एवं कर्म धारा को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए कर्म धारा को कम करना परम आवश्यक है ताकि ज्ञान में वृद्धि हो सकती है।
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ज्ञान एवं कर्म धारा को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन के कल्याण के लिए कर्म धारा को कम करना परम आवश्यक है ताकि ज्ञान में वृद्धि हो सकती है।