ज्ञान / चारित्र
हिताहित का पूरा ज्ञान होने पर भी चारित्र अंगीकार क्यों नहीं करते ?
योगेन्द्र
चारित्र-मोहनी का उदय दो तीव्रता का →
1. तीव्र → जिसमें चारित्र ग्रहण के भाव ही नहीं होंगे, जैसे शराब के नशे में अच्छे भाव ही नहीं आते।
2. मंद → चारित्र ग्रहण के भाव तो आते हैं पर ले नहीं पाते जैसे बीयर के हल्के नशे की स्थिति।
मुनि श्री सुप्रभसागर जी