तप

अंतरंग में मानसिक तप की मुख्यता, निर्जरा अवश्य,
किंतु बाह्य के साथ निर्जरा नियमानक नहीं ।

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

Share this on...

One Response

  1. तप—इच्छाओं का निरोध करना होता है।तप के द्वारा कर्मो की निर्जरा होती है।यह दो प़कार के होते हैं 1 बाह्य और 2 अन्तरंग । अंतरंग तप से मन का नियमन होता है, इसमे प़ायश्तित, विनय, वैयावृत्य, स्वाधाय, ध्यान और व्युसर्ग होते हैं।लेकिन बाह्य तप द़व्य के आलम्बन से होता है और दूसरो के देखने में होता है, इसमे अनशन आदि छह प़कार के होते हैं।अतः अंतरंग में मानसिक तप की मुख्यता, निर्जरा अवश्य होती है लेकिन बाह्य के साथ निर्जरा नियमानक नही होती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This question is for testing whether you are a human visitor and to prevent automated spam submissions. *Captcha loading...

Archives

Archives
Recent Comments

May 29, 2019

June 2024
M T W T F S S
 12
3456789
10111213141516
17181920212223
24252627282930