तीर्थंकर प्रकृति में अनुभाग

तीर्थंकर-प्रकृति बंध में अनुभाग अलग अलग होता है (अलग अलग व एक तीर्थंकर का),
श्रेणी चढ़ते समय उत्कृष्ट हो जाता है, सामान्यकेवली का भी ।
इसलिए उदयकाल में फर्क नहीं दिखायी देता ।

मुनि श्री सुधासागर जी/पं. रतनलाल बैनाड़ा जी

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4 Responses

  1. जिनके आश्रय से भव्य जीव संसार से पार उतरते हैं, वह तीर्थ कहलाता है।तीर्थ का अर्थ धर्म भी है, इसलिये तीर्थ या धर्म का प़वर्तक करने वाले महापुरुष को तीर्थंकर कहलाते हैं।
    आत्मा में तीर्थ बनने के संस्कार मनुष्य भव में किसी केवली भगवान् या श्रुत केवली महाराज के चरणौ मे बेठकर दर्शन विशुद्वी आदि सोलह कारण भावनाओं के चिन्तन से प़ाप्त होते हैं।
    ऐरावत क्षेत्र में चोबीस तीर्थंकर होते हैं और विदेह क्षेत्र में सदा बीस तीर्थंकर होते हैं।प़कति बंध का अर्थ स्वभाव होता है,आत्म परिणमन के द्वारा किए गए पुदगल् ज्ञानावरणी रुप अनेक भेदो में प़ाप्त होते हैं।अतः तीर्थंकर प़कति में अनुभाग अलग अलग होते हैं .श्रेणी चढते हुए उत्कृष्ट होते रहते हैं, जब कि उदय काल में फर्क दिखाई नहीं देता है।

    1. पहली लाइन में “बंध” add कर दिया,
      दूसरी में सत्ता है,
      तीसरी में तो उदय लिखा ही है ।

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