श्रेणिक को तो नरकायु बंध गयी थी, वे 12 शीलव्रतों का पालन कर नहीं सकते थे, तो सोलह कारण भावना कैसे भायी ?
योगेन्द्र
दर्शन-विशुद्धि भाने से ।
पं. रतनलाल बैनाड़ा जी
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प़कृति बंध का मतलब प़कृति का अर्थ स्वभाव होता है। आत्मा के द्वारा ग़हण किए गए पुदगल स्कंध में ज्ञान आदि को आवरित करने रुप होना प़कृति बंध है।
तीर्थंकर- – जिसके आश्रय से भव्य जीव संसार से पार उतरते हैं वह तीर्थ कहलाते हैं और धर्म का प़वर्तन करने वाले महापुरुष को तीर्थंकर कहते हैं। आत्मा में तीर्थंकर बनने के लिए मनुष्य भव में सोलह कारण भावनाओं के चिन्तन से प्राप्त होता है।
अतः उक्त कथन सत्य है श्रेणिक को नरक-गति बंध गयी थी, वे बारह शीलव़तो का पालन नहीं कर सकते थे तो सोलहकारण भावना कैसे भायी थीं उसका कारण दर्शन विशुद्वी भाने से हूई थी।
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प़कृति बंध का मतलब प़कृति का अर्थ स्वभाव होता है। आत्मा के द्वारा ग़हण किए गए पुदगल स्कंध में ज्ञान आदि को आवरित करने रुप होना प़कृति बंध है।
तीर्थंकर- – जिसके आश्रय से भव्य जीव संसार से पार उतरते हैं वह तीर्थ कहलाते हैं और धर्म का प़वर्तन करने वाले महापुरुष को तीर्थंकर कहते हैं। आत्मा में तीर्थंकर बनने के लिए मनुष्य भव में सोलह कारण भावनाओं के चिन्तन से प्राप्त होता है।
अतः उक्त कथन सत्य है श्रेणिक को नरक-गति बंध गयी थी, वे बारह शीलव़तो का पालन नहीं कर सकते थे तो सोलहकारण भावना कैसे भायी थीं उसका कारण दर्शन विशुद्वी भाने से हूई थी।