पहले “साइकिल” की चाह,
फ़िर उसमें जुड़ गई मोटर यानि “मोटर साइकिल”,
फिर साइकिल तो पूरी निकाल दी “मोटर” रह गई ।
चिंतन
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उक्त कथन सत्य है कि तृष्णा की चाह जिन्दगी के लिए बहुत बड़ी बुराईयों में से एक है जो जिन्दगी के लिए अभिशाप है। अतः जो उदाहरण दिया गया है कि सायकिल की चाह के बाद मोटरसाइकिल खरीदता है वह मोटर बन जाती हैं।
अतः जीवन में तृष्णा या लोभ के भाव छोड़ना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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उक्त कथन सत्य है कि तृष्णा की चाह जिन्दगी के लिए बहुत बड़ी बुराईयों में से एक है जो जिन्दगी के लिए अभिशाप है। अतः जो उदाहरण दिया गया है कि सायकिल की चाह के बाद मोटरसाइकिल खरीदता है वह मोटर बन जाती हैं।
अतः जीवन में तृष्णा या लोभ के भाव छोड़ना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।