त्याग
सही त्याग वस्तु का नहीं, उसके प्रति लगाव का होता है। इसीलिये तप को त्याग के पहले कहा जाता है। तप से मोह कम होता है, तब त्याग स्वतः ही हो जाता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
सही त्याग वस्तु का नहीं, उसके प्रति लगाव का होता है। इसीलिये तप को त्याग के पहले कहा जाता है। तप से मोह कम होता है, तब त्याग स्वतः ही हो जाता है।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
One Response
मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने त्याग को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः सबसे पहिले तप का अभ्यास करके फिर त्याग करना परम आवश्यक है। अतः जीवन के कल्याण के लिए तप एवं त्याग करना परम आवश्यक है।