त्याग

त्याग दो प्रकार का —
1. संग्रह किये हुये को छोड़ना
2. संग्रह करना ही नहीं

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  1. त्याग के कई मतलब होते हैं, सचेतन और अचेतन समस्त परिग़ह की निवृति को कहते हैं, इसके अलावा प़ीति के लिए अपनी वस्तु को देना, इसके अतिरिक्त संयमी जनों के योग्य ज्ञान आदि का दान करना भी है।
    अतः उक्त कथन सत्य है कि त्याग दो प्रकार का होता है, संग्रह किये को छोड़ना या संग्रह करना नहीं । अतः जीवन में संग्रह करना नहीं चाहिए क्योंकि मरने के बाद कुछ अपना नहीं रहता है। मोक्ष मार्ग पर चलने के लिए साधुओं को सभी कुछ त्याग यानी अपरिग़ह करना ही पड़ता है।

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