दर्शन
जीवन की शुरुवात दर्शन से ही होती है।
प्रकार…
1. बाह्य…. जो चर्म इन्द्रियों से होता है।
2. अंतरंग… सम्यग्दर्शन*, जिसके लिये गुरु की आवश्यकता होती है।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
* पदार्थों के सच्चे स्वरूप का दर्शन
जीवन की शुरुवात दर्शन से ही होती है।
प्रकार…
1. बाह्य…. जो चर्म इन्द्रियों से होता है।
2. अंतरंग… सम्यग्दर्शन*, जिसके लिये गुरु की आवश्यकता होती है।
निर्यापक मुनि श्री वीरसागर जी
* पदार्थों के सच्चे स्वरूप का दर्शन
4 Responses
मुनि श्री वीरसागर महाराज जी का कथन सत्य है कि जीवन की शुरुआत दर्शन से होती है! इसके दो प़कार होते हैं, ब़ाह्य रुप चर्म इन्दियों से होता है, जबकि दूसरा अंतरंग यानी सम्यग्दर्शन, जिसके लिए गुरु की आवश्यकता होती है! अतः जीवन को पवित्र बनाना है तो सम्यग्दर्शन के लिए भगवान एवं गुरुओं की शरण में जाना परम आवश्यक है!
‘चर्म इन्द्रियों’ ka kya meaning hai, please ?
Normal आंखें।
Okay.