दान

सीखे कहाँ नबाब जू , ऐसी देनी देन;
ज्यों ज्यों कर ऊँचौ कियो, त्यों त्यों नीचे नैन ?
रहीम खान खाना… देनहार कोई और है, देवत है दिन रैन;
लोग भरम मोपै करें, तातै नीचे नैन।

मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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One Response

  1. दान का तात्पर्य परोपकार की भावना से अपनी वस्तु का अर्पण करना होता है।दान चार प्रकार के होते हैं, आहार दान, औषधि दान, ज्ञान दान और अभय दान। अतः मुनि महाराज जी ने जो उदाहरण दिया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जीवन में अपना कल्याण करना हो तो दान अवश्य करना चाहिए ताकि पुण्य की प्राप्ति होती है।

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