दिगम्बरत्व मुनियों के मूलगुणों में (21) तथा अचेलकत्व शेष गुणों (7) में।
दोनों का अर्थ एक सा होते हुए भी दिगम्बरत्व बाह्य तथा अचेलकत्व अंतरंग(आसक्ति न होना)
मुनि श्री मंगलसागर जी
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मुनि श्री मंगलसागर महाराज जी ने दिगम्बरत्व एवं अचेलकत्व को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।
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मुनि श्री मंगलसागर महाराज जी ने दिगम्बरत्व एवं अचेलकत्व को परिभाषित किया गया है वह पूर्ण सत्य है।