दिव्यध्वनि को अपने क्षयोपशम के अनुसार जघन्य, मध्यम, उत्कृष्ट समझते हैं। महत्वपूर्ण यह नहीं कि कितना समझे बल्कि यह है कि क्या समझ रहे हैं → भगवान की वाणी समझ रहे हैं(तब सार्थकता होगी)।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड- गाथा 389)
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने दिव्य ध्वनि का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जिसने भगवान् की वाणी सुनी होगी उनके जीवन का कल्याण अवश्य हुआ होगा।
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मुनि श्री प़णम्यसागर महाराज जी ने दिव्य ध्वनि का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। अतः जिसने भगवान् की वाणी सुनी होगी उनके जीवन का कल्याण अवश्य हुआ होगा।