दूसरे
दर्शनज्ञ सार्त्र ने कहा → “दूसरा(पर) नरक है।”
उनके शिष्य ने कहा → इससे तो हम दूसरों का अस्तित्व हीन कर रहे हैं ?
सो उसने सुधारा → “दूसरे की अनुभूति नरक है।”
उदाहरण → एक अंधेरे कमरे में दो बहरे शांत बैठे हैं। प्रकाश होने पर ही एक दूसरे की अनुभूति हुई, मौजूद तो पहले भी थे।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया