दृष्टिकोण
सागर से कहा — देखो ! ये सूरज कितना दुष्ट है, तुमको जलाकर तुम्हारा पानी हड़प लेता है।
सागर — नहीं वह मुझ पर और सब पर परोपकार करता है।
खारे पानी को मीठा बनाकर मुझे वापस कर देता है, जहाँ मैं नहीं पहुँच सकता वहाँ की भी ज़रूरतें पूरी करता है।
मुनि श्री प्रमाणसागर जी
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द्वष्टिकोण हर जीव का अलग अलग होता है,कुछ सकारात्मकु लेते हैं,कुछ नकारात्मक लेते हैं। जो जीव सकारात्मक लेते हैं वही अपना कल्याण करने में समर्थ रहते हैं। अतः मुनि श्री प़माण सागर महाराज जी ने उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है।