द्रव्य को समझो, उस पर श्रद्धा नहीं।
श्रद्धा तत्त्व पर रखो, यही कल्याणकारी है।
हालाँकि तत्त्व पराधीन है जैसे दीपक तथा बाती द्रव्य हैं, प्रकाश तत्त्व, कल्याणकारी।
मुनि श्री सुधासागर जी
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द़व्य का तात्पर्य गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं,यह उत्पाद व्यय और ध्रौव्य से युक्त है।यह छह प़कार के होते हैं, जीव,पुदग्ल, धर्म,अधर्म,आकाश एवं काल।
तत्व का मतलब जिस वस्तु में जो गुण वही होता है।उसका उक्त रुप होना तत्व है।यह सात प़कार के होते हैं,जीव,अजीव,आस्रव,बंध,संवर, निर्जरा और मोक्ष। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि द़व्य को समझो,पर उस पर श्रद्धा नहीं। तत्व पर श्रद्धा रखो वही कल्याणकारी है। हालांकि तत्व पराधीन है जैसे दीपक एवं बाती द़व्य है, जबकि प़काश तत्व कल्याणकारी है।
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द़व्य का तात्पर्य गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं,यह उत्पाद व्यय और ध्रौव्य से युक्त है।यह छह प़कार के होते हैं, जीव,पुदग्ल, धर्म,अधर्म,आकाश एवं काल।
तत्व का मतलब जिस वस्तु में जो गुण वही होता है।उसका उक्त रुप होना तत्व है।यह सात प़कार के होते हैं,जीव,अजीव,आस्रव,बंध,संवर, निर्जरा और मोक्ष। अतः मुनि महाराज जी का कथन सत्य है कि द़व्य को समझो,पर उस पर श्रद्धा नहीं। तत्व पर श्रद्धा रखो वही कल्याणकारी है। हालांकि तत्व पराधीन है जैसे दीपक एवं बाती द़व्य है, जबकि प़काश तत्व कल्याणकारी है।