चीजों का त्याग तो सब करते/कराते हैं, कषायों का क्यों नहीं ?
1. भावों का त्याग कठिन है, चीजों का आसान, इसलिये मुनियों को दीक्षा के समय भी कषायों का त्याग नहीं कराया जाता ।
2. आग बुझा दी पर पैट्रोल रखा हो तो आग कभी भी भड़क सकती है ।
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भाव,त्याग और कषाय को समझना जरूरी है।भाव का मतलब जीव के परिणामों को कहते हैं।
त्याग का मतलब सचेतन और अचेतन व समस्त परिग़ह की निवृत्ति को त्याग कहते हैं।
कषाय का मतलब आत्मा में होने वाली क़ोधादि रुप कलुषित को कहते हैं,क़ोध, मान,माया ओर लोभ यह चार कषाये होती हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि चीजों का त्याग करते हैं एवं करवाते हैं लेकिन कषायो का त्याग नहीं करते हैं इसका मुख्य कारण भावों का त्याग करना मुश्किल है। चीजों का त्याग करना सरल है लेकिन भावों का त्याग करना मुश्किल है। मुनियों को भी दीक्षा के समय भी कषायो का त्याग नहीं कराते हैं। अतः जीवन में भावों क़ोध,मान,माया ओर लोभ का त्याग करना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।
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भाव,त्याग और कषाय को समझना जरूरी है।भाव का मतलब जीव के परिणामों को कहते हैं।
त्याग का मतलब सचेतन और अचेतन व समस्त परिग़ह की निवृत्ति को त्याग कहते हैं।
कषाय का मतलब आत्मा में होने वाली क़ोधादि रुप कलुषित को कहते हैं,क़ोध, मान,माया ओर लोभ यह चार कषाये होती हैं।
अतः उक्त कथन सत्य है कि चीजों का त्याग करते हैं एवं करवाते हैं लेकिन कषायो का त्याग नहीं करते हैं इसका मुख्य कारण भावों का त्याग करना मुश्किल है। चीजों का त्याग करना सरल है लेकिन भावों का त्याग करना मुश्किल है। मुनियों को भी दीक्षा के समय भी कषायो का त्याग नहीं कराते हैं। अतः जीवन में भावों क़ोध,मान,माया ओर लोभ का त्याग करना आवश्यक है ताकि जीवन का कल्याण हो सकता है।