दूसरों के स्वभाव को जानोगे तभी अपने को जानने की जिज्ञासा जगेगी,
तब निष्कर्ष निकलेगा कि आत्म-तत्व ही श्रेष्ठ है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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द़व्य, गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं,या उत्पाद, व्यय और धौव्य से युक्त है। द़व्य छह होते हैं, जीव,पुदगल, धर्म,अधर्म,आकाश और काल ।
उक्त कथन सत्य है कि द़व्यों का ज्ञान यानी दूसरों के स्वभाव को जानोगे तभी अपने को जानने की जिज्ञासा आवेगी। तभी निष्कर्ष निकलेगा कि आत्म तत्व ही श्रेष्ठ हैं।
अतः आत्म तत्व को जानने के लिए द़व्यों का ज्ञान होना आवश्यक है।
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द़व्य, गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं,या उत्पाद, व्यय और धौव्य से युक्त है। द़व्य छह होते हैं, जीव,पुदगल, धर्म,अधर्म,आकाश और काल ।
उक्त कथन सत्य है कि द़व्यों का ज्ञान यानी दूसरों के स्वभाव को जानोगे तभी अपने को जानने की जिज्ञासा आवेगी। तभी निष्कर्ष निकलेगा कि आत्म तत्व ही श्रेष्ठ हैं।
अतः आत्म तत्व को जानने के लिए द़व्यों का ज्ञान होना आवश्यक है।