द्रव्य यदि पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो जाय तब ना तो संसार चलेगा, ना ही परमार्थ ।
मुनि श्री सुधासागर जी
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द़व्य का मतलब गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं या जो उत्पाद व्यय और ध़ौव्य से युक्त है उसे कहते हैं,पुदगल भी छह प़कार के होते हैं। जीव के शुभाशुभ भावों के निमित्त से बंधन वाले सूक्ष्म पुद़गल स्कन्धों को द़व्य कर्म कहते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि मुनि श्री सुधासागर महाराज ने कहा है कि द़व्य यदि पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो जाय तब ना तो संसार चलेगा और न ही परमार्थ चलेगा।
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द़व्य का मतलब गुण और पर्याय के समूह को कहते हैं या जो उत्पाद व्यय और ध़ौव्य से युक्त है उसे कहते हैं,पुदगल भी छह प़कार के होते हैं। जीव के शुभाशुभ भावों के निमित्त से बंधन वाले सूक्ष्म पुद़गल स्कन्धों को द़व्य कर्म कहते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि मुनि श्री सुधासागर महाराज ने कहा है कि द़व्य यदि पूर्ण रूप से स्वतंत्र हो जाय तब ना तो संसार चलेगा और न ही परमार्थ चलेगा।