द्रव्य
द्रव्य में गुण तथा पर्याय, ज्ञान की पहुँच पर्याय तक, भावात्मक गुण तक पहुँच नहीं। अर्थ-पर्याय पर भी पहुँच नहीं।
व्यंजन पर्याय दो तरह से बनती हैं –> मुख्य (जो दिख रहा है) तथा गौण भी(अर्पित तथा अनर्पित)।
यदि एक पर्याय को देखकर मूल्यांकन किया तो मिथ्यादृष्टि, प्रायः हम वर्तमान से द्रव्य को परिभाषित करते हैं।
ब्र. डॉ. नीलेश भैया