धर्म पापीओं को नहीं बचाता, पाप से बचाता है ।
इसलिये पाप के उदय में और-और धर्म करें ताकि और-और पाप का उदय ना आये ।
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धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को कहते हैं या जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख तक पहुचाता है, वही धर्म है। पाप का मतलब जो आत्मा को शुभ से बचाए अथवा दूसरों के प्रति अशुभ परिणाम होना पाप है। हिंसा, झूठ, चोरी,कुशील और परिग़ह यह पांच पाप है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि धर्म पापीओं को नहीं बचाता बल्कि पाप से बचाता है। इसलिए पाप के उदय में और और धर्म करें जिससे पाप का उदय न होने पाएं।
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धर्म का तात्पर्य सम्यग्दर्शन सम्यक्ज्ञान और सम्यक्चारित्र को कहते हैं या जीवों को संसार के दुखों से बचाकर मोक्ष सुख तक पहुचाता है, वही धर्म है। पाप का मतलब जो आत्मा को शुभ से बचाए अथवा दूसरों के प्रति अशुभ परिणाम होना पाप है। हिंसा, झूठ, चोरी,कुशील और परिग़ह यह पांच पाप है।
अतः उक्त कथन सत्य है कि धर्म पापीओं को नहीं बचाता बल्कि पाप से बचाता है। इसलिए पाप के उदय में और और धर्म करें जिससे पाप का उदय न होने पाएं।