धर्म करने का अधूरापन

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  1. उपरोक्त कथन सत्य है कि ग़हस्थो को कितना भी धर्म पालन में पूजा पाठ आदि कर लेता है लेकिन उसके हृदय में प़ाणी मात्र के प्रति समता भाव और सहज भाव नहीं है तो उसको धर्म की क़ियायो का कोई महत्व नहीं है और न ही कोई फल मिलता है। धर्म करने का उद्देश्य अपनी आत्मा को निर्मल बनाना होता हैं, जबकि लोग पुण्य कमाने के लिए करते हैं लेकिन जीवन को पुण्यमान बनाने का प्रयास करना चाहिए ताकि धर्म की क़ियायो में सार्थकता होगी। अतः जो मुनि श्री क्षमासागर जी ने उपदेश दिया गया है वह पूर्ण सत्य है। मुनि श्री क्षमासागर महाराज जी को नमोस्तु नमोस्तु।

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