धर्म-ध्यान
धर्म-ध्यान (क्रिया) तो सब करते हैं, मिथ्यादृष्टि भी ।
पर धर्म-ध्यान सम्यग्दृष्टि, धर्म को ध्यान पूर्वक करते हैं ।
सम्यग्दर्शन पाने को भी धर्म नहीं, धर्म-ध्यान करना होगा ।
खाते, पीते, चलते, बैठते धर्म-ध्यान हो सकता है, यदि ये कार्य ध्यान पूर्वक किये जायें तो ।
आर्यिका श्री स्वस्तिभूषण माताजी
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धर्म ध्यान- – पंचपरमेष्टी को भक्ति, शास्त्र स्वाध्याय, तत्त्व चिन्तन, रत्नत्रय व संयम आदि में मन को लगाना धर्म ध्यान कहते हैं। अतः उक्त कथन सत्य है कि धर्म ध्यान की क़िया तो सब करते हैं लेकिन उनमें मिथ्याद्वष्टि भी होते हैं। लेकिन सम्यग्दर्शन पाने को धर्म नहीं बल्कि धर्म ध्यान करना आवश्यक है। अतः धर्म ध्यान किसी स्थति में कर सकते हैं लेकिन कार्य ध्यान पूर्वक किया जाना चाहिए।