धर्म… क्रिया नहीं, प्रयोग है ।
सिर्फ मंदिर के लिये नहीं, हर ज़गह के लिये है ;
कुछ समय के लिये नहीं, हर समय के लिये है ।
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धर्म- – सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ही धर्म है या जीवों को संसार के दुखों से बचाना या मोक्ष सुख में पहुचावे वही धर्म है। यह भी दो प्रकार के होते हैं, व्यवहार और निश्चय धर्म होते हैं ।
अतः उक्त कथन सत्य है… धर्म क़िया नहीं बल्कि प़योग है।यह सिर्फ मंन्दिर के लिए नहीं हर जगह के लिए है और कुछ समय के लिए नहीं बल्कि हर समय के लिए होता है। जैन धर्म में सभी जीवों के कल्याण की भावना रखी जाती है। धर्म, अहिंसा परमोधर्म का मार्ग प्रशस्त करता है।
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धर्म- – सम्यग्दर्शन,सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्र ही धर्म है या जीवों को संसार के दुखों से बचाना या मोक्ष सुख में पहुचावे वही धर्म है। यह भी दो प्रकार के होते हैं, व्यवहार और निश्चय धर्म होते हैं ।
अतः उक्त कथन सत्य है… धर्म क़िया नहीं बल्कि प़योग है।यह सिर्फ मंन्दिर के लिए नहीं हर जगह के लिए है और कुछ समय के लिए नहीं बल्कि हर समय के लिए होता है। जैन धर्म में सभी जीवों के कल्याण की भावना रखी जाती है। धर्म, अहिंसा परमोधर्म का मार्ग प्रशस्त करता है।