धार्मिक क्रियाओं का महत्त्व
मुम्बई में 9 दिसम्बर 2010 को एक बिटिया की शादी हुई, पिता हैं श्री दिलीप घेवारे (Deputy Collector ) ।
शादी में कंदमूल और आतिशबाजी का निषेध तो था ही साथ ही तीन विशेष बातें भी देखी गईं –
- सुबह 6 बजे विदा से पहले, पिता स्वाध्याय कर रहे थे ।
- विदा के समय पिता की आंखों में एक भी आंसू नहीं था ।
- विदा के तुरंत बाद पिता सबको लेकर मंदिर के लिये प्रक्षाल और पूजा करने चले गये ।
आज से 41 साल पहले भी आगरा में ऐसा ही कुछ देखा गया था –
श्री नित्यानंद जी जैन की बेटी मधु जी की सगाई होने वाली थी, श्री नित्यानंद जी ने लड़के की माँ श्रीमति कलावती जी से निवेदन किया कि मेरा स्वाध्याय का समय हो रहा है, यदि आप आज्ञा दें तो मैं मंदिर चला जाऊं, सगाई की रस्म मेरी पत्नी तथा बेटे कर लेंगे । लड़के की माँ ने खुशी खुशी आज्ञा दे दी और सगाई की रस्म लड़की के पिता की अनुपस्थिति में संपन्न हुई ।
शादी के बाद विदा के समय पिता मंदिर से लौट रहे थे और बेटी को आशीर्वाद तथा धर्म पर चलने की सलाह देकर आगे चले गये ।
ऐसे व्यक्तियों से हम भी सीखें कि धर्म, सांसारिक कर्त्तव्यों से बहुत ऊपर है/महत्त्वपूर्ण है ।