कैसी बिड़म्बना है कि धार्मिक क्रियाओं में भी हम आर्तध्यान करते हैं !!
आर्यिका श्री विज्ञानमति माताजी
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आर्तध्यान– इष्ट वियोग आदि के निमित्त से निरंतर पीड़ा या दुःख रुप परिणाम होना आर्तध्यान हैं। यह चार प्रकार के होते हैं,इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग,वेदना और निदान। अतः उक्त कथन सत्य है कि लोग धार्मिक क्रियाओं तो करते हैं लेकिन उसका महत्व नहीं समझते हैं लेकिन यह बिड़म्बना है कि यह लोग आर्तध्यान में करते हैं जिसके कारण उनको पूर्ण लाभ नहीं मिलता है। अतः जीवन में धार्मिक क्रियाओं में विशुद्ध ध्यान करना चाहिए ताकि अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।
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आर्तध्यान– इष्ट वियोग आदि के निमित्त से निरंतर पीड़ा या दुःख रुप परिणाम होना आर्तध्यान हैं। यह चार प्रकार के होते हैं,इष्ट वियोग, अनिष्ट संयोग,वेदना और निदान। अतः उक्त कथन सत्य है कि लोग धार्मिक क्रियाओं तो करते हैं लेकिन उसका महत्व नहीं समझते हैं लेकिन यह बिड़म्बना है कि यह लोग आर्तध्यान में करते हैं जिसके कारण उनको पूर्ण लाभ नहीं मिलता है। अतः जीवन में धार्मिक क्रियाओं में विशुद्ध ध्यान करना चाहिए ताकि अच्छे परिणाम मिल सकते हैं।