ध्रुव / अध्रुव
ध्रुव भाव आते ही, अध्रुव पदार्थ भी आने लगते हैं क्योंकि ध्रुव भाव में साता रहती है ।
जहाँ साता/संवेग रहती है वहाँ वैभव आता है, असाता/उद्वेग में वैभव दूर भागता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
ध्रुव भाव आते ही, अध्रुव पदार्थ भी आने लगते हैं क्योंकि ध्रुव भाव में साता रहती है ।
जहाँ साता/संवेग रहती है वहाँ वैभव आता है, असाता/उद्वेग में वैभव दूर भागता है ।
मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
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ध़ुव भाव में जो निरंतर रहता है, जैसे प़थम समय में शब्द आदि का ज्ञान आता है,वैसा ही बना रहता है, जबकि अध़ुव भाव में निरंतर नहीं रहता है, जैसे प़थम शब्द आदि का ज्ञान हुआ वैसा नहीं रहता है,कम या अधिक होता रहता है ।
अतः उपरोक्त कथन सत्य है कि ध़ुव भाव आते ही,अध़ुव पदार्थ भी आने लगते हैं, क्योंकि ध़ुव भाव में साता रहती है। अतः जहां साता या संवेग रहते हैं वहां वैभव आता है, जबकि असाता या उद्वेग में वैभव दूर भागता है।