निगोद

साधारण नामकर्म के उदय से निगोद (नि = नियम से + गोद = क्षेत्र), अर्थात् जिस क्षेत्र में नियम से अनंत जीवों का वास हो निगोद शरीर भी, क्षेत्र भी। निगोदिया बादर भी, सूक्ष्म भी।
(आयु: एक सांस का 18वां भाग भी, अंतर्मुर्हूत भी)

मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड – गाथा – 191)

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6 Responses

  1. मुनि महाराज जी ने निगोद की परिभाषा का उदाहरण दिया गया है वह पूर्ण सत्य है!

  2. ‘निगोद शरीर’ hi ‘निगोद क्षेत्र’ भी hai ya ye donon alag alag hain ?

    1. बादर निगोदिया शरीर में,
      सूक्ष्म का क्षेत्र हर जगह।

  3. ‘आयु: एक सांस का 18वां भाग भी, अंतर्मुर्हूत भी’ Yeh kis apeksha se kaha ?

    1. एक सांस में 18 बार अपर्याप्तक की अपेक्षा;
      अंतर्मुहूर्त पर्याप्तक की अपेक्षा।

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